Wednesday, February 27, 2008

माँ

ऑंखें बिछाए बैठी है वो , रोज रहा तकती है मेरी
जाने किस वादे पर आस लगाये बैठी है मेरे ,

आँचल की चादर , पल्लू का सहारा , प्यार की डांट और आंखों की नमी ,
सब कुछ तोह लूटा चुकी है मुझपे ,
बस मुझे मांगती है माँ मेरी,

हर पल सताया है मैंने उसे ,
फिर भी खुशी मांगती है मेरी ,
शतरंज के खेल में हर बार जान बूझ करव हारी है मुझसे,
और कहती है तू है जीत मेरी ,

उसे छोड़ पूरी दुनिया को दोस्त बनाया है मैंने ,
फिर भी मुझ अकेले को कहती है तू है दुनिया मेरी ,
एक मुद्दत से देखा नहीं है मैंने उसे ,
पर वह रोज निहारती है तस्वीर मेरी ,

उसके पास होने के एहसास से भाग जाती है बिमारी मेरी,
पर अपनी बिमारी छुपाती है माँ मेरी ,

आज भी याद आती है तोह दिलमें कसक और आंखों में नमी छोड़ जाती है मेरी ,
वैसे तोह कुछ नहीं कहती है ,
पर मुझे पता है रातो को छुपकर रोती है माँ मेरी


I was really missing my MOM that Day

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